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जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद का विरोध किया था पं.रामसुमेर

रुद्रपुर।तराई के संस्थापक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय पंडित राम सुमेर शुक्ल की 110वीं जयंती पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय चौक स्थित शुक्ल की प्रतिमा पर मेयर विकास शर्मा, दर्जा मंत्री उत्तम दत्ता, जिला अध्यक्ष कमल जिंदल,किच्छा के पूर्व विधायक राजेश शुक्ला, ब्लॉक प्रमुख रीना गौतम, भारत भूषण चुघ ने कार्यकर्ताओं के साथ माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि कर श्रद्धांजलि दी। पंडित राम सुमेर शुक्ला राजकीय मेडिकल कॉलेज में स्थित उनकी प्रतिमा पर भी माल्यार्पण किया गया।इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि पंडित राम सुमेर शुक्ल का जन्म 28 नवंबर 1915 को भेड़ी शुक्ल, तहसील रुद्रपुर, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनके पिता का नाम राम नक्षत्र शुक्ल तथा माता का नाम छवि राजी देवी था। पंडित राम सुमेर शुक्ल की प्रारंभिक शिक्षा रंगून (म्यांमार) स्थित कैंब्रिज विद्यालय में हुई। जहां उनके पिता का व्यवसाय था। आठवीं तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई गोरखपुर के सेंट एंड्रयूज़ कॉलेज से पूर्ण की। इसके उपरांत वह वाराणसी गए, जहां उन्होंने इंटरमीडिएट एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कानून की शिक्षा के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।वाराणसी में अध्ययन के दौरान ही वे छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे तथा वर्ष,1936 के लाहौर अधिवेशन में मात्र 21 वर्ष की आयु में उन्होंने जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद का सार्वजनिक रूप से विरोध किया और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने वकालत न करने का संकल्प लिया और स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। इस दौरान वे तीन बार जेल गए तथा नैनी जेल, इलाहाबाद और फतेहगंज जेल में नजरबंद कैदी के रूप में कठोर यातनाएँ सहन कीं। 31 दिसंबर, 1943 को दिल्ली अधिवेशन में देशभर से आए छात्र एवं युवक कांग्रेस के 485 प्रतिनिधियों द्वारा उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। इस अधिवेशन का शुभारंभ पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा किया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, जब वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे थे और नवसृजित देवरिया जिला विकास परिषद के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने उन्हें नैनीताल जनपद के तराई क्षेत्र को बसाने की जिम्मेदारी सौंपी और उन्हें तराई कॉलोनाइजेशन का अध्यक्ष नियुक्त किया। पंडित राम सुमेर शुक्ल ने कठिन परिश्रम के साथ इस महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व का निर्वहन किया तथा पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापित शरणार्थियों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवारों के पुनर्वास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य की भी परवाह नहीं की तथा प्राणघातक हमलों की परवाह किए बिना धैर्य, दृढ़ता और साहस के साथ कार्य किया। 28 दिसंबर 1959 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद द्वारा उन्हें लिखा गया पत्र उनके उत्कृष्ट कार्य का प्रमाण है।रुद्रपुर शहर के विकास की आधारशिला 1956 में तब रखी गई जब उनकी अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति द्वारा इसे रुद्रपुर टाउन एरिया घोषित किया गया। किसानों के हितों के प्रति उनकी रुचि और सक्रियता को देखते हुए किसान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य पुरुषोत्तम दत्त टंडन ने उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया। सामान्य जनता की समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर आजीवन संघर्ष किया। निरंतर संघर्ष के कारण उनका स्वास्थ्य प्रभावित हुआ और 4 दिसंबर 1978 को 63 वर्ष की आयु में रुद्रपुर (नैनीताल), वर्तमान ऊधम सिंह नगर में उनका निधन हो गया। उनके व्यक्तित्व, संघर्ष, समर्पण एवं त्याग को स्मरण करते हुए उत्तराखंड सरकार द्वारा रुद्रपुर मुख्य चौराहे पर उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है। ग्राम रामनगर स्थित राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तथा रुद्रपुर में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज का नाम भी उनकी स्मृति में रखा गया है।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मेयर विकास शर्मा ने पंडित राम सुमेर शुक्ल स्मृति पार्क के सुंदरीकरण एवं शहर में उनकी स्मृति में एक भव्य स्वागत द्वार बनाने की घोषणा की। इस मौके पर कनिष्ठ प्रमुख नरेंद्र बागवानी, ग्राम प्रधान विनीत सिंह सोलंकी, गफ्फार खान, आशीष तिवारी, धर्मराज जायसवाल, सुरेंद्र चौधरी, संदीप अरोड़ा, रामू चतुर्वेदी, भारत मिश्रा, मनीष शुक्ला, आशीष शुक्ला, बिजेंद्र यादव, मंडल अध्यक्ष मयंक तिवारी, पूर्व मेयर रामपाल, प्रमोद गुप्ता, कविता मान, मधु गुप्ता, पूनम प्रजापति, भोपाल सिंह रावत, नगर पालिका अध्यक्ष सचिन शुक्ला, बीवी मिश्रा, अजय कुमार, गोपाल जोशी आदि मौजूद थे।

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