पुण्य तिथि पर शरद जोशी को याद करते हुए उनके कुछ तीखे, चुटीले व्यंग्य उद्यरण

5 सितंबर 1991 को बंबई में शरद जोशी (जन्म 21 मई 1931, उज्जैन) का निधन हुआ। शरद जोशी प्रख्यात भारतीय हिंदी कवि, लेखक, व्यंग्यकार और हिंदी फिल्मों व टेलीविजन के संवाद एवं पटकथा लेखक थे। उन्हें 1990 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। नवभारत टाइम्स अखबार में उनका समसामयिक विषयों पर दैनिक स्तंभ प्रतिदिन खूब पढ़ा जाता था।
पेश हैं शरद जोशी के तंज भरे उद्धरण –
हिंदी में लेखक का आस-पास बहुत भयावना और निर्मम होता है। वह हमला न भी करे, उसे बचाव की लड़ाई लड़नी ही पड़ती है।
मैं हिंदी साहित्य की दुनिया का नागरिक कतई नहीं हूँ। उसे उन्हीं चरणों में पड़ी रहने दो, जहाँ वह पड़ी है। वही शायद उसका लक्ष्य था। दरबारों से निकली और दरबारों में घुस गई।
मैं अपने फुटपाथों पर चला हूँ। मैं उसकी स्थिति बदलने के लिए भी कुछ नहीं करूँगा, क्योंकि मुझसे बेहतर प्रज्ञा के सजग, सचेत, समझदार और कमिटेड किस्म के लोग उसे दरबार में ले जाने लगे हैं। मैं उनसे पराजित हूँ।
सँकरे रास्ते और तंगदिल लोगों के आक्रामक समूहों से जूझते हुए चलने का प्रयत्न करना, साहित्य में जीना है।