उत्तराखंड

पशुओं का अवैध वध करने पर दो दुकान संचालक दोषी

देहरादून:विकासनगर, देहरादून की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।अदालत ने दो मांस की दुकान संचालकों को पशु क्रूरता और सार्वजनिक रूप से अवैध वध करने के अपराध में दोषी ठहराया है। इस मामले को विकासनगर पुलिस ने पंजीकृत कर ली है। जिसमें पाया गया कि दुकान के बाहर जीवित पशुओं को बांधकर दुकान के अंदर उनका वध किया जा रहा था। जो पशु कल्याण और खाद्य सुरक्षा दोनों कानूनों का गंभीर उल्लंघन है।न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार की गतिविधियां फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (लाइसेंसिंग एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ फूड बिजनेस) विनियम, 2011 का उल्लंघन हैं, जिनके अनुसार केवल लाइसेंस प्राप्त बूचड़खानों से प्राप्त जमे हुए या पहले से वध किए गए मांस की बिक्री की अनुमति है।न्यायालय ने यह भी माना कि मांस की दुकानों के बाहर जीवित पशुओं को बांधना स्वयं में क्रूरता है, जो पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11(1) के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।अदालत ने प्रत्येक आरोपित पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 429 के अंतर्गत तीन हजार रुपये का जुर्माना और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 11(1) के अंतर्गत 50 रुपये का जुर्माना लगाया है। भुगतान न करने की स्थिति में कारावास का प्रावधान रखा गया है।न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बिना उचित शेड, भोजन और पानी की व्यवस्था के पशुओं को बांधना तथा दुकानों के भीतर या सार्वजनिक स्थानों पर उनका वध करना न केवल क्रूरता है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता नियमों का भी उल्लंघन है।रुबीना नितिन अय्यर, निदेशक (नीति सुधार), पीपल फॉर एनिमल्स, उत्तराखंड ने न्यायालय के फैसले का स्वागत किया साथ ल कहा न्यायालय द्वारा यह स्वीकार किया जाना कि मांस की दुकानें भी पशुओं को अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में रखकर उनके साथ क्रूरता करती हैं, राज्य भर में ऐसे मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है। मांस की दुकानों को केवल जमे फ्रोजन मांस की बिक्री की अनुमति है, पशुओं का वध करने की नहीं। हम नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, जिला पंचायत और खाद्य सुरक्षा विभाग से आग्रह करते हैं कि वे पशु कल्याण और खाद्य सुरक्षा दोनों मानकों को बनाए रखने हेतु ऐसे सभी उल्लंघनों के विरुद्ध त्वरित और कठोर कार्रवाई करें।

locnirnay@gmail.com

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