प्लास्टिक ने इंसान को कैसे बनाया गुलाम
ग्वालियर:बदलते जीवन में प्लास्टिक ने घरों, बाज़ारों, दफ़्तरों में अपनी जगह बना ली है । यह चुपचाप दीमक की तरह घुसपैठ कर लोगों को गुलाम बना लिया।जो दिखने में सस्ता, हल्का है ,मगर यह पर्यावरण, नदियों, समुद्रों, खेतों और सांसों में भी घुलकर जहर बन चुका है।आइटीएम विवि ग्वालियर, मध्यप्रदेश के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग हेड और सहायक प्रोफेसर मनीष जेसल ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक ताज़ा रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दुनिया में साल लगभग 400 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, लेकिन इसका सिर्फ नौ प्रतिशत ही रिसाइकल हो पाता है। बाकी समुद्रों और नदियों में बह जाता है या मिट्टी में दब जाता है । यह अनुमान है कि हर साल 19 से 23 मिलियन टन प्लास्टिक सीधे हमारे जलस्रोतों में भी पहुंच रहा है। समुद्रों में अब 75 से 199 मिलियन टन प्लास्टिक जमा है।वहीं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी प्लास्टिक का बड़ा हाथ है , 2019 में इसका उत्पादन 1.8 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर गैस वातावरण में छोड़ चुका था, जो वैश्विक उत्सर्जन का 3.4 प्रतिशत है। प्रोफेसर मनीष बताते हैं कि भारत में तो प्लास्टिक का प्रयोग गांव से लेकर शहर तक हो रहा है।वर्ष 2022 में सरकार ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध की घोषणा भी कर दी।स्ट्रॉ, थर्मोकोल प्लेट, कप, प्लास्टिक झंडे, पैकेजिंग आदि सब पर बैन लगा। लेकिन खुलेआम बिक रहा है। प्लास्टिक रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस कदर घुल-मिल गया है।सुबह उठते ही जिस टूथब्रश से हम दांत साफ करते हैं, वह भी प्लास्टिक का है। दूध की थैली, सब्ज़ी का पैकेट, मोबाइल कवर, पानी की बोतल, ऑफिस का पेन हर जगह यह मौजूद है। प्रोफेसर मनीष जैसल ने बताया कि कुछ राज्यों ने साहसिक कदम उठाए हैं। सिक्किम ने स्कूल और कॉलेज परिसरों में प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। हिमाचल प्रदेश में पर्यटक स्थलों पर प्लास्टिक बैग पर पाबंदी से साफ-सफाई में स्पष्ट फर्क दिखा है। लेकिन यह शहरों के कुछ हिस्सों या पर्यटक इलाकों तक सीमित रह जाती हैं।संयुक्त राष्ट्र के “ग्लोबल प्लास्टिक ट्रीटी” जैसे प्रयास उम्मीद की किरण दिखाते हैं, जो 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने का लक्ष्य रखते हैं। लेकिन इन अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में भी उद्योगों का असर दिखाई देता है। बड़े निर्माता अपने मुनाफे के मॉडल से समझौता नहीं करना चाहते। माइक्रोप्लास्टिक अब हमारे शरीर के अंदर पाया जा रहा है खून, फेफड़ों, और यहाँ तक कि गर्भनाल तक में प्लास्टिक के कण पाए जाने लगे हैं । डॉक्टर्स चेतावनी दे रहे हैं कि यह हमारे हार्मोन संतुलन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और यहां तक कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है। इसका असर जानवर, पक्षी, मछलियां, सभी पर हैं। 2024 में प्रकाशित एक UNEP विश्लेषण के अनुसार, अगर मौजूदा रफ्तार जारी रही, तो 2060 तक प्लास्टिक उत्पादन आज की तुलना में तीन गुना हो जाएगा। प्रोफेसर जैसल ने बताया कि भारत में 2023-24 के दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अनुमान लगाया कि देश में सालाना 4 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से लगभग 60 प्रतिशत से अधिक अनियंत्रित रूप से लैंडफिल या खुले में जलाया जाता है। यह जलना केवल प्रदूषण ही नहीं, बल्कि कार्बन उत्सर्जन और ज़हरीली गैसों के रूप में एक नए खतरे को जन्म देता है।
यूरोपीय संघ ने 2030 तक सभी पैकेजिंग को रिसाइकिल योग्य बनाने का लक्ष्य रखा है, जबकि कनाडा और केन्या जैसे देश सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर लगभग पूर्ण प्रतिबंध की ओर बढ़ चुके हैं।मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि उत्पादन तेज़ और रीसाइक्लिंग धीमी है, वहीं AI डेटा को कार्रवाई में बदल कर, पूर्वानुमान, पृथक्करण, मार्ग-अनुकूलन, रिसाव-निगरानी और ईपीआर-ऑडिट—इन पाँच कड़ियों में तुरंत सुधार की गुंजाइश पैदा करती है। प्लास्टिक के प्रयोग से बचने के लिए सरकार, पर्यावरणविदों के साथभीहर नागरिक को आगे आना होगा ।हमें तय करना होगा कि हम प्लास्टिक के गुलाम बने रहेंगे या अपने जीवन को इससे मुक्त करेंगे। क्योंकि अगर हमने आज नहीं सोचा, तो कल शायद सोचने के लिए भी समय और जगह न बचे।




