शोध/आविष्कार

फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रतिबंधित पॉलीथिन को बाय बाय करेगा नेचुरल फाइबर बैग

लोक निर्णय, पंतनगर: फलों की गुणवत्ता के साथ उत्पादन बढ़ाया जाए, जिससे किसानों को उनके उत्पाद की बेहतर कीमत मिल सके। इसके लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि जुटा है। विवि के परिधान एवं टैक्साइल्स विभाग ने नान वोवेन फैब्रिक तकनीक विकसित की है। इससे फल स्कर्टिंग बैग तैयार किए हैं। जो पर्यावरण अनुकूल है। इसके पेटेंट के लिए फाइल कर दी गई है। पेड़ में ही लगे बौनी प्रजाति के आम को बैग से ढक दिया जाता है। इससे न केवल आम को बीमारियों से बचाया जा सकता है, बल्कि इसकी लाइफ भी बढ़ जाती है। साथ ही इसका रंग भी आकर्षक होता है। इसी तरह लीची में भी बैग का प्रयोग किया जा रहा है। इससे बाजार में फल का आम सामान्य फल की अपेक्षा दो से तीन गुना ज्यादा मिलेगा।
फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए दुनिया के गिने चुने विकसित देशों में फलों की बैगिंग की जा रही है। इसी को ध्यान में रखकर पंत विवि ने नेचुरल फैब्रिक बैग तैयार किया है। विज्ञानियों के अनुसार फाइबर बैग के प्रयोग से करीब 10 प्रतिशत उत्पादन बढ़ा है, जबकि गुणवत्ता करीब 40 प्रतिशत बढ़ी है। बैग के प्रयोग से फलों में लगने वाली बीमारियां नहीं लगती हैं और स्प्रे भी कम करना पड़ता है। जो जैविक कदम की ओर बढ़ रहा है। कुलपति डाक्टर मनमोहन सिंह चौहान ने बैगिंग वाले फलों की गुणवत्ता भी देखी और तारीफ भी की।

ऐसे शुरु हुआ शोध
पंतनगर: विवि के उद्यान अनुसंधान केंद्र पत्थरचट्टा के संयुक्त निदेशक डाक्टर एके सिंह ने पांच साल पहले उद्यान विभाग की एमएससी की छात्रा किरन से और तीन साल पहले एमएससी की छात्रा इशु से बैगिंग फलों की गुणवत्ता परखने शोध कराया। जिसमें फलों की गुणवत्ता बढ़ी मिली। लेकिन बाजार में बिकने वाले बैग प्लास्टिक के है।जिसका ऊपरी हिस्सा कागज का और नीचला हिस्सा प्लास्टिक की कोटिंग की हुई हाेती है। जो पर्यावरण के लिए खतरा है। इस पर कुलपति डाक्टर मनमोहन सिंह चौहान व शोध निदेशक डाक्टर अजीत सिंह नैन के निर्देश में विवि के सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय के परिधान एवं टैक्सटाइल्स विभाग ने नेचुरल फैब्रिक बैग बनाने पर शोध शुरु किया। महाविद्यालय की डीन डाक्टर अल्का गोयल के मार्गदर्शन में तीन साल में शोध छात्रा मंजूलता और छात्र सूर्या तेजस्वी ने शोध किया। दोनों शोधार्थियों ने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ नेचुरल फाइबर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी कोलकाता पश्चिम बंगाल में जाकर डिजाइन तैयार अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर बैग तैयार किया है।जो पर्यावरण के अनुकूल है।

ऐसे बनता है नेचुरल फैब्रिक बैग
पंतनगर: नान वुवेन फैब्रिक तकनीक से नेचुरल फैब्रिक बैग बनाए जाते हैं। इसमें सूत व लायोसील तंतु का प्रयोग किया जाता है। फलकोनेरिया इनसिग्निस नामक पौधे से तैयार अर्क के घोल में बैग को डाल कर उपचारित किया जाता है। इसके बाद इसे सूखा कर अर्क के घोल में डालने से बैग एंटी फंगल हो जाता है। इससे आम या लीची फटने के बाद भी 12 से 14 दिन तक खराब नहीं होती है। जबकि सामान्य बैगिंग से फल छह से सात दिन में खराब हो जाता है।

आम के लिए बैगिंग के फायदे
-बैगिंग से आम का एक समान आकर्षक कलर होता है
-फल की भंडारण क्षमता दो दोगुना बढ़ जाती है
-विभिन्न व्याधि एवं रोग रहित उत्पादित होता है
-बैगिंग के बाद किसी प्रकार फल पर स्प्रे नहीं किया जाता
-सामान्य आम की अपेक्षा बैगिंग वाले आम की गुणवत्ता करीब तीन गुना बढ़ जाती है

लीची के लिए बैगिंग का लाभ
लीची का कलर एक समान और रेडिश पिंक हो जाता है
-लीची फटती नहीं
-लीची तेज धूप में झुलसने से बच जाती है
-चमगादड़ के हमले से लीची की बचाव हो जाता है
-धूल व ओले से बचाव हो जाता है
-विभिन्न व्याधि व रोग रहित उपचारित होता है

ऐसे होता है बैग का प्रयोग
आम जब अंडे के आकार हो जाता है, तब उसकी बैगिंग कर प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया जाता है
लीची जब पिंक कलर में होने लगती है, यानी करीब 35 दिन बाद लीची की बैगिंग कर धागे से बैग का बांध दिया जाता है।

सघन बागवानी पद्धति से देर से पकने वाली बौनी आम प्रजातियों के फलों की बैगिंग की जाती है। विवि के नेचुरल फैब्रिक बैग की उद्यान अनुसंधान केंद्र में फलों में टेस्टिंग की गई तो फलों की गुणवत्ता अच्छी मिली। भविष्य में अन्य फलों में किया जाएगा। यह सब कुलपति डाक्टर मनमोहन सिंह चौहान व शोध निदेशक डाक्टर अजीत सिंह नैन के मार्ग निर्देशन किया गया है

डाक्टर एके सिंह, संयुक्त निदेशक, उद्यान अनुसंधान केंद्र पत्थरचट्टा

नान वोवेन फैब्रिक तकनीक से बैग तैयार किए गए हैं। जो नेचुरल है और पर्यावरण के अनुकूल है। इस तकनीक का और बैग के डिजाइन का पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया गया है।

locnirnay@gmail.com

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