जानिए, कहां श्रीरामलीला मंचन का रिहर्सल हुआ शुरू
शांतिपुरी: श्रीराम के आदर्शों पर चलने के लिए ऊधम सिंह नगर के ग्राम जवाहर नगर में श्रीरामलीला मंचन का रिहर्सल शुरू हो गया है। जिससे मंचन के दौरान संवाद,अभिनय का तालमेल बना रहे और श्रीराम के आदर्शों से दर्शक अवगत भी हो सकें।कलाकार हारमोनियम,तबले, मजीरा पर अभ्यास कर पसीना भा रहे हैं । डॉक्टर गणेश उपाध्याय बताते हैं कि जब भरत नंदी ग्राम से अयोध्या लौटते हैं और उन्हें यह ज्ञात होता है कि राजा दशरथ का देहांत हो चुका है राम-लक्ष्मण-सीता वनवास चले गए हैं, यह पता चलते ही भरत का शोक बहुत मार्मिक है। वह कहते हैं, “हाय! पिता हम सबको छोड़कर चले गए। उन्होंने हमें देखने तक की प्रतीक्षा नहीं की। भाई राम, जिनके बिना अयोध्या सुनी है, वन को चले गए। मैं किस अपराध का भागी हूं कि ऐसे समय में दूर था? अब माता-पिता और भ्राता सब छूट गए। राज्य, वैभव, सब कुछ व्यर्थ है, जब राम नहीं हैं।” वह स्वयं को दोष देते हैं। “मैं अनुजों में सबसे बड़ा अपराधी हूं, क्योंकि मेरे कारण राम को वन जाना पड़ा होगा।” भरत कहते हैं कि वे अयोध्या का राजपाट नहीं लेंगे; उनका धर्म यही होगा कि वे राम के आदेश आने तक उनके चरणपादुका रखकर राज्य की सेवा करें। भरत का विलाप केवल पिता के निधन का नहीं था, बल्कि राम से वियोग, माता-पिता के असमय वियोग और अपने को कारण समझने का दुःख इन सबका मिश्रण था। उनका करुण रुदन इस आदर्श को प्रकट करता है कि सच्चा भाई अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर, धर्म और प्रेम के लिए सब कुछ त्याग देता है। वह अपने भाई की वापसी की आशा में जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए प्रेरित है।




