एक हाथ सी ही आत्मनिर्भर बन युवाओं के लिए पूरन बनें प्रेरणास्रोत
चंपावत। एक हाथ है तो क्या, कुछ करने का जज्बा तो है।यदि हौसला है तो नामुमकिन भी संभव हो जाता है। ऐसे में लोहाघाट विकासखंड की ग्राम पंचायत बलाई के पूरन सिंह जैसे लोग इस अभियान को जमीनी स्तर पर नई पहचान दे रहे हैं। पूरन सिंह ने अपने अटूट हौसले, अथक परिश्रम और सकारात्मक सोच से यह साबित किया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे कोई भी विपरीत परिस्थिति टिक नहीं सकती।पूरन सिंह का जीवन संघर्ष और प्रेरणा का प्रतीक है। वर्ष,2009 में राजस्थान की एक कंपनी में कार्य करते समय हुए हादसे में उनका बायां हाथ कट गया था। यह घटना अधिकांश लोगों के लिए जीवन थम जाने जैसी होती, लेकिन पूरन ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने इसे अपनी ताकत बनाया और एक हाथ से ही विभिन्न कंपनियों में कार्य कर अपनी जीविका चलाई।कोरोना महामारी के दौरान जब देशभर में रोजगार संकट गहराया, पूरन सिंह अपने पैतृक गांव लौट आए। गांव लौटने के बाद उन्होंने कृषि और पशुपालन को अपनाया और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाया। आज वह खेती और डेयरी दोनों कार्य करते हैं, साथ ही दूध से खोया और पनीर बनाकर स्थानीय बाजार में बेचते हैं। इससे उन्हें स्थायी आय का स्रोत मिला है और वे ग्रामीण आजीविका के एक सशक्त उदाहरण बन चुके हैं।पूरन सिंह एक हाथ से वे सभी कार्य दक्षता से करते हैं ।जिनके लिए सामान्यतः दो हाथों की आवश्यकता होती है। वे घास काटने की मशीन चलाते हैं, ट्रैक्टर स्वयं चलाते हैं।अपनी समझदारी से ट्रैक्टर के सभी नियंत्रण दाएं हाथ की ओर समायोजित कर लिए हैं। इतना ही नहीं, वे ट्रैक्टर की मरम्मत भी स्वयं कर लेते हैं।वे बड़े पैमाने पर आलू, गेहूं और मौसमी सब्जियों की खेती करते हैं। साथ ही, उन्होंने अपने हाथों से एक सुंदर फलों का बगीचा तैयार किया है। उनके इस प्रयास में उनकी पत्नी ममता का महत्वपूर्ण सहयोग है। उनके दो पुत्र गुरुकुलम अकादमी में अध्ययनरत हैं।पूरन सिंह की यह कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों से हारकर गांव छोड़ने का निर्णय लेते हैं। पूरन बताते हैं कि उनका स्पष्ट संदेश है कि गांव की मिट्टी से जुड़ें, कृषि और पशुपालन को अपनाएं, पलायन नहीं, उत्पादन करें।पूरन सिंह न केवल अपने परिवार के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भरता, साहस और स्वाभिमान के प्रतीक बन चुके हैं।





