उत्तराखंड ऊधम सिंह नगर शिक्षा

भारत में श्रृति परंपरा से शुरू हुई थी ज्ञान की परंपरा

रुद्रपुर।सरदार भगतसिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय हिंदी विभाग एवं देवभूमि विचार मंच के संयुक्त तत्वावधान में आज हुई कार्यशाला में भारतीय ज्ञान परम्परा:हिमालयी राज्य उत्तराखंड के विशेष सन्दर्भ में विषय पर गहन मंथन किया गया।।प्रथम सत्र का संचालन कार्यक्रम की संयोजक डॉक्टर बसुन्धरा उपाध्याय ने किया। उन्होंने कहा कि आज अपनी भारतीय परम्पराओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए पृथ्वीधर काला, अध्यक्ष देवभूमि विचार मंच ने कहा कि प्रज्ञा प्रवाह की उत्तराखंड इकाई राष्ट्र सेवा को समर्पित संस्था है। बौद्धिक जगत के कुहासे को दूर करने के लिए ऐसी संस्थाओं की आज बहुत अधिक आवश्यकता है,जो स्व जागरण के लिए प्रेरित करें।कार्यक्रम की मुख्य वक्ता उर्मिला पिंचा ने कहा कि भारत में ज्ञान परम्परा की शुरुआत श्रुति परम्परा से हुई है, लेखन और लिपि परम्परा बाद में आई। एनईपी में मैकाले की शिक्षा पद्धति को हटाकर भारतीय शिक्षा को स्थान दिया जा रहा है।उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय के विध्वंस के बाद भी हमारी समृद्ध ज्ञान परम्परा सदैव बनी रही।फेक फेमिनिज्म से दूर रहने की भी उन्होंने बात कही।कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर रवि शरण दीक्षित ने कहा कि हमारी छोटी छोटी लोक परंपराएं आज लुप्त होने की कगार पर हैं। वर्तमान में उनके सरक्षण की बहुत आवश्यकता है।साथ उन्हें लिपिबद्ध किए जाने की आवश्यकता है।कार्यक्रम की प्रस्तावना कैलाश अंडोला ने प्रस्तुत किया।कृष्णचन्द्र मिश्रा देवभूमि विचार मंच के उद्देश्य तथा देवभूमि विचारमंच की पत्र पत्रिकाओं के विषय मे जानकारी साझा की।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर महिपाल सिंह जी ने की। कार्यक्रम का संचालन डॉ शिल्पी अग्रवाल ने किया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ सतेंद्र राजपूत ने शोध सहयोगी संस्थायें एवं फंडिंग एजेंसी के विषय में सभी अवगत कराया।विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ प्रभाकर त्यागी ने एवं डॉ बिपिन जोशी ने भारतीय ज्ञान परम्परा के उत्तराखंड के विशेष सन्दर्भ मेंअपने विचार रखे।
कार्यक्रम के तृतीय सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी कुलपति उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा की गई।उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा के विषय मे उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय एवं एनईपी में क्या नई योजनाएं है उसपर प्रकाश डाला।साथ ही प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी ने छात्र छात्राओं ,शोधार्थियों एवं समस्त अतिथि प्रतिभागियों को सम्मानित कर उन्हें प्रमाण पत्र भी दिए।तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता सुमित पुरोहित पंतनगर विश्वविद्यालय, विशिष्ट वक्ता प्रकाश जोशी जी रूद्रपुर,डॉ अरुण चतुर्वेदी, डॉ गरिमा जायसवाल ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।कार्यक्रम की संयोजक डॉ बसुन्धरा उपाध्याय सहायक आचार्य हिंदी विभाग ने दूरस्थ स्थानों से पधारे विद्वानों का धन्यवाद दिया।कार्यक्रम में डॉ पारुल भारद्वाज रानीखेत, अमित जोशी बागेश्वर, कुंवरपाल सिंह, प्रोफेसर गुरमीत सिंह, काशीपुर,संतोष कुमार पंत काशीपुर,डॉ मंजू आर्या,विशाल वर्मा जी देहरादून, इंद्रा,डॉ आरती मौर्या ,शुभम ,डॉ नवीन नवीन चन्द्र मौलेखी,लक्ष्मी साहू,शालिनी सिंह अतुल कुमार,तिवारी ,संजना, सरबजीत कौर,दीपिका,शोधार्थी अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

locnirnay@gmail.com

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