आठवीं अनुसूची में कुमाऊंनी भाषा को शामिल करने की मांग
रुद्रपुर। जिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान डायट में 17 वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार को कुमाऊंनी भाषा मानकीकरण’ विषय पर चर्चा हुई।प्रोफेसर उमा भट्ट ने अध्यक्षता और संचालन डॉ. हयात सिंह रावत ने किया। मुख्य अतिथि प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया, मुख्य वक्ता डाॅक्टर पीतांबर अवस्थी, प्रोफेसर प्रीति आर्या, प्रोफेसर गीता खोलिया तथा डाॅक्टर तारा चंद्र त्रिपाठी थे। विद्वानों ने कुमाऊंनी भाषा के कई शब्दों के मानक रूप तय किए और कहा कि कुमाऊंनी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया जाना चाहिए। कुमाऊंनी को विद्यालयी पाठ्यक्रम में शाम्ल करने के लिए मानकीकरण किया जाना आवश्यक है। प्रोफेसर जगत सिंह बिष्ट, मुख्य वक्ता प्रोफेसर दीपा गोबाड़ी, नीलम नेगी, प्रोफेसर के.सी जोशी, डाॅक्टर नेहा पालनी, डाॅक्टर शशि पांडेय ने भी विचार रखे।रमेश चंद्र सोनी और निखिलेश उपाध्याय को ‘बहादुर सिंह बनोला कुमाऊंनी साहित्य सेवी सम्मान’, दयाल पांडे को ‘ज्योतिषाचार्य पं. जयदेव अवस्थी कुमाऊंनी भाषा सेवी सम्मान’ मुन्नी पांडे को पुष्पलता जोशी कुमाऊंनी साहित्य पुरस्कार, प्रोफेसर दीपा गोबाड़ी को मुन्नी जोशी कुमाउनी साहित्य पुरस्कार, दीपक भाकुनी को ‘ ज्योतिषाचार्य पं. जयदेव अवस्थी कुमाऊंनी भाषा सेवी सम्मान’ प्रदान किया गया। इस दौरान माया रावत की कुमाऊंनी निबंध संग्रह ‘बौड़ि’, डाॅ. कीर्तिबल्लभ शक्टा का महाकाव्य ‘घटकुकि प्राण प्रतिष्ठा’ और ‘शक्टावाग्विलास:’ तथा खुशाल सिंह खनी की कुमाऊंनी कहानी संग्रह ‘बरयात’ का विमोचन किया गया।कुमाऊंनी भाषा साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी अल्मोड़ा तथा ‘पहरू’ कुमाऊंनी मासिक पत्रिका के तत्वावधान में एवं उत्तराखंड भाषा संस्थान तथा संस्कृति विभाग के सहयोग से कार्यक्रम हुआ।




