जानें,मक्के के रेशे से रोजगार के अवसर
पंतनगर।पंत विवि के सामुदायिक महाविद्यालय में ‘मक्के के रेशे: स्वास्थ्य संवर्धन और आर्थिक समृद्धि का सशक्त माध्यम’ विषय पर हुए कार्यक्रम में आय बढ़ाने पर जोर
दिया गया।किसानों, ग्रामीण महिलाओं तथा विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर एवं पीएचडी विद्यार्थियों को कृषि अपशिष्टों, विशेषकर मक्के के रेशों के उपयोग से आय वृद्धि और पोषण संवर्धन के नए अवसरों की जानकारी दी गई। ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयी छात्र भी इस प्रशिक्षण में शामिल हुए और उन्होंने वैज्ञानिक नवाचारों के व्यावहारिक उपयोग की प्रेरणा प्राप्त की। संचालन परियोजना की प्रमुख वैज्ञानिक डा. रीता सिंह रघुवंशी ने किया। उन्होंने बताया कि सामान्यतः बेकार समझे जाने वाले मक्के के रेशे वास्तव में पोषण, स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत मूल्यवान संसाधन हैं। इनमें फ्लेवोनॉयड्स, फाइटोस्टेरॉल्स और आहार रेशे जैसे जैव सक्रिय तत्व पाए जाते हैं, जो मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग जैसी बीमारियों की रोकथाम में सहायक हैं। यदि किसान इन रेशों को एकत्र कर सुखाकर बेचें, तो उन्हें प्रति एकड़ लगभग 10 हजार रुपये तक की अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है। यदि इन्हें पाउडर के रूप में प्रसंस्करित कर मूल्य संवर्धन किया जाए तो यह आय 30 से 45 हजार रुपये प्रति एकड़ तक बढ़ाई जा सकती है। वरिष्ठ अनुसंधान सहायक अपूर्वा ने मक्के के रेशों से तैयार चॉकलेट्स की रेसिपी का प्रदर्शन किया। अपूर्वा ने प्रतिभागियों को रेशों के संग्रह, सुखाने, पाउडर निर्माण और पैकेजिंग की तकनीकें समझाईं कि इनसे लघु उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं।परियोजना के तहत प्रकाशित पुस्तक ‘भांग के बीज और मक्के के रेशों के साथ पाक कला का नवाचारः व्यंजन विधियां और पोषण संबंधी ज्ञान’ भी वितरित की गई।





